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(अंतरा 1)
बाबुल की ओ बगिया छोड़ चली मैं,
आँखों में पानी, हँसी ओ झलकी मैं।
छोटे से आँगन में बीती थी बचपन,
आज विदा होकर बन गई दुल्हन।
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(धृपद / कोरस)
ना रो बाबुल, ना बहना तू रो,
तेरे बिना कैसे ये डोली में जाऊँ मैं खो।
छूटे जो आँगन, छूटे वो गली,
बचपन की किलकारी, कैसे अब छुपा लूँ भली।
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(अंतरा 2)
माँ के वो आँचल की छाया नहीं अब,
तेरी वो लोरी, वो ममता नहीं अब।
चूल्हे की रोटियाँ, तेरा प्यार भरा हाथ,
कैसे सहूँ मैं अब, ये दूरी की बात।
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(अंतरा 3)
भैया की कलाई, वो राखी का दिन,
झूले की पींगे, सावन का पिन।
अब सब रह जाएँगे बस यादों में,
दिल रो रहा है मेरे वादों में।
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(अंतरा 4)
नई डगर है, परायी दुनिया,
दिल में समाई पुरानी गुनिया।
जो भी सीखा, यहीं से पाया,
तेरी लाड़ली अब तुझसे जुदा हुआ।
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(अंतिम अंतरा)
खुश रहो सब, ये दुआ ले चली,
पर मेरी भी थोड़ी पीर समझी चली।
बाबुल का घर मेरा मंदिर था,
आज उस मंदिर से खुदा बन चली...
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