मुक़द्दमा - धीमी तान में)
दिल को करार आया न था, दुनिया से प्यार आया न था,
जब से तेरा नाम लिया… तबसे सब कुछ पा लिया।
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(मुखड़ा - पूरे जोश से)
तेरा नाम ले के जीते हैं, तेरा ज़िक्र साँसों में है,
हर लफ़्ज़ मेरी दुआ बना, तू ही आसमाँ-ज़मीं में है।
तेरे दर पे सर झुका के, रौशन हो गया मेरा नसीब,
तेरे इश्क़ में ही राहत है, बाक़ी तो सब तज़लील है।
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(अंतरा 1)
हम तो थे बंजारे, दर-ब-दर,
तेरा नाम मिला, तो घर मिला।
सूनी रातें महक गईं यूँ,
जैसे अशआर में शेर मिला।
तेरी सूरत से शुरू दास्ताँ,
तेरे नाम पे हो अंजाम मेरा,
हर साज़, हर गीत, हर नग़मा,
तेरे इश्क़ का ही पैग़ाम मेरा।
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(कोरस – जवाबी)
“कौन है जो चैन दे सके?”
> तेरा नाम है जो राहत दे।
“कौन है जो क़ुबूल करे?”
> तेरा दर है जो रहमत दे।
“इश्क़ है या बंदगी है ये?”
> तेरे बिना सब अधूरी सी।
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(अंतरा 2)
तू ही मेरा क़िबला-ओ-काबा,
तू ही सूरत-ए-नूर बनी।
तेरे नाम से खुलते हैं पर्दे,
तेरे ज़िक्र से महफिल सजी।
तेरा साया भी गर मिल जाए,
सजदा उसी को हम समझें।
तेरे ग़म में हँस लें गर,
तो भी क़ुसूर अपना समझें।
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(बैकिंग कव्वालियां - ताली और आलाप के साथ)
“तेरा इश्क़ तो जन्नत सा है!”
“हर दर्द में रहमत सा है!”
“हम तो पिघल के रह गए हैं…”
“तेरा नाम ही ताक़त सा है!”
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(अंतरा 3 - धीमी रफ्तार, रूहानी)
तू ना मिले तो ख्वाब में आ,
तू ना बोले तो ख़ामोशी सही।
तेरे बग़ैर कुछ भी नहीं,
तेरे साथ तो तन्हाई भी सही।
तेरे कदमों में कट जाए उम्र,
तेरी रहमत की सौगात हो।
तेरा दीवाना कह दे दुनिया,
यही तो मेरी औक़ात हो।
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(समापन - आलाप और बढ़ती ताली के साथ)
तेरा नाम ले के जीते हैं,
तेरे इश्क़ में ही मिटते हैं,
मर भी जाएँ गर तेरे वास्ते,
तो क़ब्र में भी सजदे करते हैं...
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