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[संगीतात्मक आलाप – धीमे सुरों में]
हू… दिल को रब बना बैठे हैं…
हू… तेरे इश्क़ को सजदा करते हैं…
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[मुखड़ा]:
दिल को रब बना बैठे हैं, तेरा नाम जपा करते हैं,
तू समझे ना समझे लेकिन, तुझसे ही वफ़ा करते हैं।
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[अंतरा 1]:
तेरी गली में रोज़ सजदे करने आ जाते हैं,
तेरे ख्यालों के फूलों से सीने को महकाते हैं।
तू जो पास नहीं फिर भी, एहसास तेरा रहता है,
इश्क़ में तेरी हम जैसे, हर दर्द से कहते हैं...
दिल को रब बना बैठे हैं...
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[अंतरा 2]:
ना चिट्ठी ना कोई संदेसा, फिर भी तुझसे बात हुई,
तेरी यादों की तस्वीरों से मेरी हर रात हुई।
तू नज़रों से दूर सही पर, दिल में बसा है गहराई में,
सच पूछो तो बिस्मिल हैं हम, तेरी इस खुदाई में...
दिल को रब बना बैठे हैं...
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[तारीफ-ए-यार – सूफी रंग में]:
तेरी बातों में कशिश ऐसी, जैसे आयत उतर रही हो,
तेरी आंखों में रौशनी, जैसे काबा नज़र आ रही हो।
हर लफ़्ज़ में है बरकत सी, हर सांस में तेरा नाम,
हम सूफी तेरे इश्क़ में, छोड़ दिए अब सारे काम...
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[अंतरा 3]:
लोग हँसते हैं दीवानों पर, पर हमको कोई ग़म नहीं,
जिसे इश्क़ का हो यकीन, उसे और किसी का धरम नहीं।
तेरे नाम की जो आग लगी, वो बुझती ही नहीं साज़िदा,
इसी जलन में जीते हैं हम, यही इबादत है यही सज़ा...
दिल को रब बना बैठे हैं...
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[अंतरा 4 – दर्द में डूबी सच्चाई]:
तू खुदा नहीं फिर भी, हमने तुझको माना है,
हर तन्हा लम्हे में तेरा ही अफ़साना है।
क़ुरबान हो गए तेरे इश्क़ में कुछ इस तरह,
अब जीना भी इबादत है, और मरना भी बहाना है...
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[दुआ की पुकार – धीमे सुरों में]:
ऐ मौला, अगर इश्क़ गुनाह है, तो सज़ा मंज़ूर हमें,
पर उस सज़ा में तेरा नाम हो, बस यही दस्तूर हमें।
तेरे नाम का साया रहे, ये दिल की हर मंज़िल पे,
और तेरा नाम लबों पे हो, आख़िरी सांस की महफ़िल में...
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[मुखड़ा – अंतिम बार, पूरे जोश से]:
दिल को रब बना बैठे हैं, तेरा नाम जपा करते हैं,
तू समझे ना समझे लेकिन, तुझसे ही वफ़ा करते हैं…
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