[इंट्रो]
गोरी, तेरे गाँव बड़ा प्यारा,
माटी में जैसे चाँद उतारा।
तेरी गलियों में जब चलता हूँ,
हर मोड़ लगे जैसे तारा।
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[अंतरा 1]
तेरे आँगन की वो नीम की छाँव,
आज भी मेरे ख्वाबों में है।
तेरी ओढ़नी की वो खुशबू,
अब भी मेरी साँसों में है।
तेरा काजल, तेरी हँसी,
तेरा सरमाना छुप-छुप के,
सब कुछ याद है आज भी मुझे,
हर लम्हा बसा है रग-रग में।
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[कोरस]
गोरी, तेरे गाँव बड़ा प्यारा,
जहाँ हर दीवार पे तेरा सहारा।
तेरे कुएँ की मीठी बातों में,
दिल डूबा — जैसे कोई किनारा।
गोरी, तेरे गाँव बड़ा प्यारा…
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[अंतरा 2]
मैं हल चलाऊँ खेतों में,
पर मन तो तेरे पिछवाड़े में।
तेरी चूड़ियों की छनक सुनूं,
हर शाम अपने आँगन में।
तेरी माँ की डाँट भी प्यारी,
तेरे भाई की वो घूरन भी,
सब कुछ अपना-सा लगता था,
जब तू साथ थी उन गलियों में।
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[ब्रिज – थोड़ी तड़प]
अब सुना है शहर गई है तू,
बड़े ख्वाब तले छुप गई है तू।
पर दिल अब भी वहीं रुका है,
जहाँ तेरी चप्पल उतरी थी तू।
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[कोरस (फिर से)]
गोरी, तेरे गाँव बड़ा प्यारा,
अब भी मेरी आँखों का सहारा।
तू लौट आ एक बार सजनिया,
तेरे बिना सूना है सारा।
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